इस अनोखी रसोई में केवल 5 रूपये में मिलता है देसी घी में बना स्वादिष्ट खाना, अमीर लोग भी यहाँ खाने के लिए लगाते है लाइन

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कहते है कि अगर इंसान को खाने के लिए अच्छा खाना मिल जाएँ तो उसका पूरा दिन भी अच्छा ही जाता है. जी हां आप सब ने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि इंसान के दिल का रास्ता पेट से हो कर जाता है. यानि अगर इंसान को अच्छा खाना खाने को मिल जाएँ तो उसका दिल भी हमेशा खुश ही रहता है. बरहलाल आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे है जहाँ केवल पांच रूपये में देसी घी में बना बहुत ही स्वादिष्ट खाना मिलता है. जी हां यक़ीनन इस जगह पर खाना खाने के बाद आपको अपने घर के खाने की याद भी नहीं सताएगी. गौरतलब है कि यह जगह दिल्ली के नजदीक फरीदाबाद शहर में मौजूद है.

दरअसल फरीदाबाद के सेक्टर 46 में स्थित हुडा स्टैंड मार्किट में हर संडे सुबह ग्यारह बजे से एक अनोखी रसोई लगाई जाती है. बता दे कि इस रसोई में बने खाने को खाने के लिए तो बड़े बड़े लोग भी लाइन लगाते है. बता दे कि यहाँ हर संडे केवल पांच रूपये में देसी घी में बनी सब्जी और पूड़ी सब को खाने के लिए दी जाती है. जी हां इसकी कीमत इतनी कम इसलिए है, ताकि हर व्यक्ति इस खाने को खा सके और कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे. बरहलाल इस रसोई का नाम आशीर्वाद रसोई रखा गया है. वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस रसोई को फरीदाबाद के ही बुजुर्ग दम्पति जिनकी उम्र करीब 63 वर्ष है, वो चलाते है.

यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो इस रसोई के मालिक राजीव और उनकी पत्नी अलका कोचर है. जो रिक्शेवाले से लेकर कार वालो तक हर किसी का पेट भरते है. वही अगर अलका की माने तो उनका कहना है कि वो लोग देसी घी में सब्जी बनाते है और फिर देसी घी में उसी समय गर्म गर्म पूड़ियाँ निकालते है. यानि वो कभी भी ग्राहकों को ठंडी पूड़ियाँ नहीं देते. गौरतलब है कि पांच रूपये की इस प्लेट में आलू की सब्जी, चार पूड़ियाँ, अचार और सलाद होता है. इसके साथ ही अलका जी का कहना है कि वो लोगो को पौष्टिक खाना खिलाने में यकीन रखती है और अपने खाने को पौष्टिक बनाने की पूरी कोशिश करती है.

बता दे कि इस रसोई की शुरुआत इसी साल अप्रैल के महीने में की गई है और इस काम में दम्पति के रिश्तेदार और उनके बच्चे भी उनकी मदद करते है. हालांकि इस मुहीम को आगे ले जाने में चरणजीत सिंह नाम के शख्स भी उनके सहयोगी है. बता दे कि इसका पूरा खर्च दम्पति खुद ही उठाते है. गौरतलब है कि हर संडे रसोईये के साथ पूरा परिवार तय की गई जगह पर पहुँच जाता है. बरहलाल रसोईया सब्जी बनाने के बाद आटा गूंथता है और फिर जैसे जैसे लोग आते है, वैसे वैसे गर्म गर्म पूड़ियाँ निकाली जाती है.

हालांकि इस बारे में कोचर दम्पति का कहना है कि वह लोगो को यह खाना मुफ्त में भी दे सकते थे, लेकिन फिर भी वह इस खाने के लिए लोगो से बहुत ही कम राशि लेते है, ताकि उनका स्वाभिमान भी बना रहे और सब का पेट भी भर जाएँ. शायद यही वजह है कि लोग बड़े हक से खाने के साथ सब्जी और अचार मांगते है. जी हां क्यूकि अगर यह खाना फ्री होता, तो शायद वो ऐसा न करते. इसके साथ ही दम्पति का कहना है कि कोई भी काम करने में मुश्किल नहीं होती, केवल थोड़े से हौंसले की ही जरूरत होती है.

जी हां अगर नियत साफ़ हो तो हर काम में सफलता मिल ही जाती है. इसके साथ ही कोचर दम्पति का कहना है सतसंग से मिली इस प्रेरणा के बाद कि कोई भूखा न रहे, उन्होंने इस रसोई की शुरुआत की है. हालांकि कोचर दम्पति तो यह रसोई हर रोज लगाना चाहते है, लेकिन फ़िलहाल उनके पास न तो इतनी सुविधा है और न ही इतना समय है कि वो इस रसोई को हर रोज लगाएं.

बरहलाल हम तो यही कहेंगे कि अगर देश के हर व्यक्ति की सोच इतनी अच्छी हो जाएँ तो इस देश से भुखमरी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.